Wednesday, 26 August 2015

रामायण के अंत में की जाने वाली विसर्जन वंदना  
विदा होइके जाइयो ,सुनहुँ वीर हनुमान। 
जय जय राजा राम की , जय लक्ष्मण बलवान। 
जय कपीस सुग्रीव की , जय अंगद हनुमान।। 
जय जय कागभुसुंड की , जय गिरी उमा महेस।
 जय मुनि भरद्वाज की , जय तुलसी अवधेश। ।
 करउँ दंडवत प्रभुसन तुम्हहि कहाँ  करि जोरि। 
वार वार रघुनाम कहि , सुरति कारवाहिं  मोरि। ।
कथा विसर्जन होत है , सुनहु वीर हनुमान। 
जो जान जहाँ से आए हो , तहँ तहँ करउ पयान। ।
राम लक्ष्मण जानकी , भरत शत्रुघ्न भाई। 
 कथा विसर्जन करत है, इषहिं शीश नवाई। । 
श्रोता वक्ता मंडली , सबहूँ करहु कल्याण। 
रामायण बैकुंठहि , विदा होय हनुमान। । 
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        जयकारा   
रामचन्द्र कौशल किशोर, महादेव गणपति स्वामी। 
सरस्वती मैया माँ जनक लली , शारद माता दुर्गा मैया। 
गिरधर गोपाल अंजनी नंदन हनुमान लला की जय। 
गुरु गोविन्द देव की जय  रामायण मैया की जय।  

Saturday, 22 August 2015

                                   रामायण के शुरू में की जाने वाली विसर्जन वंदना 

 जेहिं सुमिरत सिधि होई , गण नायक करिवर वदन।
करउ अनुग्रह सोइ , बुद्धि राशि शुभगुण सदन।
मूक होय वाचाल , पंगु चढिहिं गिरवर गहन।
जासु कृपा सो दयालु , द्रवहु सकल कलिमल दहन।
नील सरोरुह श्याम ,तरुण अरुन वारिज नयन।
करहु सो मम उर धाम , सदा क्षीर सागर सयन।
कुन्द इन्दु सम देह , उमा रमण करुणा अयन।
जाहिं दीन पर नेह , करहुँ कृपा मर्दन मयन।
बन्दॐ गुरु पद कन्ज , कृपासिन्धु नर रूप हरि।
महा मोह तम पुंज , जासु वचन रविकर निकर।
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी
बन्दॐ अवध भुआल ,सत्य प्रेम जेहि राम पद।
विछुरत दीनदयाल , प्रियतनु तृण इब परिहरउ।
प्रबनउ पवन कुमार , खेल बल  पावक ज्ञान घन।
जासु ह्रदय आगार , वसहिं राम सर चाप धर।
दोहा - गिरा अर्थ जल बीच सम , कहिअत भिन्न न भिन्न।
           बन्दॐ सीता राम पद , जिन्हहि परप  प्रिय खिन्न। ।

Wednesday, 5 August 2015






 जिंदगी से शिकायते कुछ कम नही है।
पर क्या करूँ सिर्फ एक मेरा ही गम तो गम नहीं है।
सोचती हूँ सिर्फ मेरे ही साथ ऐसा होता है ,
दुनिया देखी  तो पाया , सबके साथ  ऐसा होता है सिर्फ हम नहीं है।
 माँ नही तो पापा सही,कुछ के पास तो दोनों नहीं है ,
खाने को दो वक़्त की रोटी और है अपना घर ,
कुछ भूखे पेट सोते है, तो कुछ को फुटपाथ भी नसीब नहीं है।
 इस मतलबी दुनिया में भी मेरे अपने मेरे पास है ,
ईमानदारी की हंसी है प्रेम भरा विश्वास है। परिवार में एकता है बड़ो का सम्मान है.
 जहाँ  हो ये सब वही तो आवास है।
शिकायते भूलकर करती हु तेरा शुक्रिया... जिंदगी
खुले दिल से स्वीकारती हु तुझे ,बस अब कोई गम नहीं है..............।
 

Sunday, 2 August 2015

माँ

आज हवा में अजीब सी खुशबू छायी है। 
शायद वो आज मेरी माँ से मिलकर आयी है।
मत होना मेरी बेटी उदास ये संदेसा लेकर आयी है।
याद आती है वो रातें जब माँ ने लोरी सुनायी है।
खामोश है दीवारे और घर में उदासी छायी है।
त्योहारो में खुशियाँ नहीं , पकवान भी है फीके से
रंगोली के रंग भी बेरंग हो गए ,  और दीवाली में भी अँधियारी छायी है।
 

Thursday, 23 July 2015

जिंदगी का हर पल खूबसूरत है ,  जीकर तो देखो।
हँसते मुस्कुराते गुजर जाएगी , एक कदम बढाकर तो देखो।
है कोई बोझ दिल में अगर , माँ-बाप से कह कर तो देखो।
उलझे रहते हो व्यर्थ के रिश्तो में , आस-पास नज़रे घुमाकर तो देखो।
नहीं है दोस्त कोई तो गम नही , भाई को दोस्त बनाकर तो देखो।
हल हो जाएगी समस्याएं चुटकी में , पिता को बताकर तो देखो।
गर दर्द  है कोई सीने में या कोई तकलीफ , माँ के  पहलू में जाकर तो देखो।
राह हो जाएगी आसान जिंदगी की , किसी को हमसफ़र बनाकर तो देखो।
रहते है माँ-बाप तुम्हारे साथ कहना छोड़ दो , हो तुम उनके साथ ये अहसास कराकर तो देखो।
मांगेगे हर जनम वो हम जैसी औलादे , है वो ख़ास उन्हें जताकर तो देखो।
न मिले स्वाद जब छप्पन भोग से ,  माँ के हाथों की रोटी खाकर तो देखो।
नहीं है उन्हें उम्मीदे ज्यादा दूर रहते बच्चो से , बस हर शाम फोन  घुमाकर तो देखो।
बढ़ जाएगी ताकत खुद-ब-खुद , टूटते बिखरते रिश्तों को सँवारकर तो देखो।
तरसता है खुद खुदा माँ -बाप के प्रेम के लिए , अपनी खुशनसीबी पर इतराकर  तो देखो।
नहीं है दौलत खर्चने के लिए तो कोई गम नहीं , मुस्कुराहट की दौलत  लुटाकर तो देखो।
मजा न आये जीने में तो कहना , बस  एक बार आजमाकर तो देखो।


Wednesday, 22 July 2015

बचपन बहुत याद आता है........।

वो शाम सुहानी वो दादी नानी ,गावं का आँगन और परियो की कहानी
बचपन बहुत याद आता है........।
वो दादी का घर वो नानी का घर, और हम सब का खेलना घर घर ,
बचपन बहुत याद आता है........। 
वो गर्मी की छुटियाँ वो तपती गलियां ,वो दुपहरी में खेलना कंचे -कंचियां
बचपन बहुत याद आता है........।
वो चूरन  की पुड़िया वो मीठी गोली ,और हम सब बच्चों की हंसी ठिठोली
बचपन बहुत याद आता है........।
वो आमों का बगीचा वो खेत - खलिहान ,लकड़ी की सीढ़ी और मचान
बचपन बहुत याद आता है........।
वो पहेली बूझना वो आम का चूसना ,सबकी नज़रे बचा कर दोपहरी में घूमना
 बचपन  बहुत याद आता है........।                                                                                                              
खो गए जो दिन काश वो फिर से लौट आये , फिर कोई वो कहानी सुनाये                                                          थक गए हम बड़े बन कर, इसलिए बचपन  बहुत याद आता है........।                                                                                    

Tuesday, 21 July 2015

हमसफ़र…

आने से जिसके महका ये संसार, है वो मेरा हमसफ़र। 
अंधियारी रातों में जो है उजाले का श्रृंगार , है वो मेरा हमसफ़र। 
सपनो को हकीकत बनाकर जो मेरी दुनिया सजा रहा , है वो मेरा हमसफ़र। 
सात फेरो  के सातो वचनो को हर हाल में जो निभा रहा , है वो मेरा हमसफ़र। 
हूँ मैं अर्धांगिनी पर मुझे जो पूरा हक़ दिल रहा , है वो मेरा हमसफ़र ।
अहसान है उसका मुझ पे मगर वो जो मेरा अहसान मान  रहा , है वो मेरा हमसफ़र। 
क्या  मैं भी बन पाऊँगी उस जैसी हमसफ़र  , जैसा है वो मेरा हमसफ़र………। 



Monday, 20 July 2015

मंजिल


 
ये कैसी जगह ले आई है जिंदगी , जहाँ भटकती राहों को मंजिल मिल गयी। 
हर पल है जैसे खुशनुमा सपना, मैं मीरा सी दीवानी बन गयी।  
और उस खुदा से कुछ न चाहिए , इतनी ख़ुशी मिली के दुनिया जन्नत बन गयी। 
उस अजनबी शख्स के प्रथम स्पर्श से , एक नयी पहचान मिल गयी। 
आँखों में पले सपने हकीकत बन गए , यकीन नहीं आता कि आज मैं  ''दुल्हन ''बन गयी।

पुरूष


जिंदगी के हर पड़ाव पर मजबूत दीवार सा है वो।
हर तकलीफ को सहने के लिए तैयार सा है वो।
अपने परिवार को मुश्किलों से बचाने पहाड़ सा है वो।
अपनी इच्छाओं को साख पर रखकर अपनों के लिए इत्मीनान सा है वो।
सब सो सके आराम से इसलिए खुद को जगाता है वो।
घबरा न जाये उसके अपने सो बहुत कुछ छिपाता है वो।
कर्तव्यनिर्वाह मैं हो न जाये चूक इससे घबराता है वो।
अपनों की ख़ुशी की खातिर त्यौहार में भी काम पे जाता है वो।
माँ की शिकायत, बीवी की उलाहना सुनकर भी मुस्कुराता है वो।
उसे भी दर्द होता है , तकलीफ होती है रोना आता है ,
पर रो नही सकता क्योकि ''पुरूष'' जो है वो।
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Friday, 3 July 2015

एक अजनबी


     एक पल में जिंदगी बदल गयी, आज मैं बेटी से बहु बन गयी।
     डर  लगता था अजनबियों से , आज एक अजनबी की जीवन संगिनी बन गयी। 
    सात फेरों का रिश्ता सात जन्मों का बन गया , माता पिता से मिली जिंदगी अब परायी बन गयी। 
    लगता है जैसे है कल की ही बात , गुड़ियों से खेलने वाली वो बच्ची अब सायानी बन गयी। ………

Friday, 26 June 2015

ek cup chhai

आज स्कूल जाते बच्चो को देखा, स्कूल यूनिफार्म में बहुत प्यारे लग रहे थे उन्हें देखकर अपने स्कूल के दिन याद आ गए। क्या दिन थे वो भी ……… जुलाई आते ही हर घर में बस पढाई ही पढाई का शोर शुरू हो जाता है, मम्मी पापा को स्कूल के खर्चो की टेंशन और बच्चो  को पढाई की। फिर से वही रूटीन सुबह जल्दी उठना, टीवी बंद , खेलना कूदना भी कम करना है...... बाप रे बाप कितना टेंशन होता था बच्चो को, लगता था की बड़े ही अच्छे होते उन्हें स्कूल तो नही जाना पड़ता कितनी जल्दी होती थी न बड़े होने की पर अब जब बड़े हो गए है तो लगता है काश.....  छोटे ही होते।
    मुझे  नई नई किताबो से आने वाली खुशबू बहुत अच्छी लगती थी , कितने सलीके से हर किताबो के ऊपर कवर लगाते थे और अपनी पसंदीदा नेमचिट, नई यूनिफार्म।,नये शूज़ सब कुछ नया नया, लगता था के जुलाई का महीना सिर्फ बच्चो के लिए ही बना है। मेरे लिए ये बारिश ये जुलाई का महीना तो और भी खास है ............. जब मैं  9 वीं क्लास में थी तब मेरा एडमिशन नए स्कूल में हुआ मेरी स्कूल घर से बहुत दूर थी, आने जाने मे बहुत थक जाती थी  एक दिन शाम को लौटते समय बारिश होने लगी और मैं भीग गयी।  घर आने पर मेरी मम्मी ने मुझे एक कप में चाय दी मेरी  ख़ुशी का तो ठिकाना ही न था। …………पता है क्यों? क्योकि उसके पहले कभी मम्मी ने हम भाई बबहनो को चाय नही दी थी। कहती थी की चाय बच्चो को नुक्सान पहुचती है और मुझे चाय पीने का बहुत शौक था पर मम्मी की वजह से नही मिलती थी कितनी भी मिन्नतें कर लूँ  पर मम्मी अपनी बात पर अड़ी रहती , पर उस दिन पता नही उनको क्या हुआ था ? कुछ भी हुआ हो मुझे क्या मेरी तो मन्नत पूरी हो गयी थी न , और चाय पीने में मगन थी।
  पापा ने पूछा  क्या बात है आज सूरज कहा से उगा है आज बिटिया को चाय मिल गयी ? मम्मी ने कहा की आज से हर शाम स्कूल से आने के बाद मिलेगी उसे 'एक कप चाय ' ., थक जाती है बेचारी स्कूल से आते आते।
        कसम से उस समय मुझे जितनी ख़ुशी हुयी थी मैं  बता नही सकती। तब से चाय मेरा कम्फर्ट ड्रिंक है मैं  उदास रहूँ  या गुस्सा या मुझे कोई भी तकलीफ हो चाय मेरा मूड ठीक कर देती है अब मम्मी मेरे पास तो नही है पर जब भी शाम को चाय पीती  हूँ तब उनकी याद आ जाती है।  और मेरे इस चाय प्रेम के बारे में सब जानते है मुझे गुस्सा आ रहा होता है तो मेरे भाई बोलते है के कोई दीदी को चाय तो पिला दो यार। हाहाहा………मेरे ऑफिस के लोग भी जानते है कि  मैं चाय की कितनी बड़ी शौक़ीन हूँ। 
      पर अब ससुराल आने के बाद मुझे चाय कम करने की हिदायत दी गयी है ,मेरी प्यारी सी चाय के बारे में कैसी कैसी अफवाह फैलाते है लोग। ……… मेरी प्यारी चाय ……तुम दुखी मत होना  मैंने तुमसे थोड़ी सी दूरी जरूर बना रखी है पर  तुम्हारा साथ नही छोड़ूगी  सुबह न सही पर शाम को एक कप चाय तो जरूर पियूँगी तुम तो मेरे और मेरी मम्मी के बीच की कड़ी हो.…।  वो बात अलग है मुझे मेरी मम्मी के हाथ की बनी चाय इस जनम में तो नही मिलेगी पर कुछ तो सहारा है न..........आई लव यू  तुम मेरी माँ की तरह मेरा ख्याल रखत्ती थी।

Thursday, 25 June 2015

meri saheli

मैं शिखा ……25  साल कि  एक लड़की। .......... एक ऐसी लड़की जिसकी कोई सहेली कोई बहन नही है.…… बड़ा अजीब लग रहा है न सुनने में, पर ये सच है  सालो पहले एक सहेली थी "मेरी मम्मी " जो अब इस दुनिया में नही है तब से आज तक  अकेली हूँ । और अब तो मैं ससुराल भी आ गयी हूँ  पर यहाँ भी वही हाल है न सास न ननद न ही देवरानी -जेठानी घर में कोई नही जिससे मैं  बात कर सकूँ । …और तो और मेरे ऑफिस में भी सिर्फ एक मैं ही लड़की बाकी लड़के। .... है न अजीब हर तरफ मैं लड़को से घिरी रहती हूँ ………। हाहाहा  पापा, भाई, पति, ससुर, देवर और ऑफिस के कलीग,भाइयों  के दोस्त  जो मुझे दीदी कहते है हर तरफ लड़के ही लडके। ……… कौन कहता है कि  लड़के बुरे होते है। ……… मुझे उनसे डर नही लगता बल्कि मैं कंफर्टेबल फील करती हूँ ,  वो मेरा ख्याल रखते है मुझे हंसाते  है मेरे मन की हर बात जान लेते है बिना मेरे कुछ कहे……मैं शॉपिंग करने भी उन्ही के साथ ही जाती हूँ । मैं अपनी हर छोटी से छोटी बाते उनसे शेयर करती हूँ  , वो मेरे बुरे जोक्स पर भी हंसते  है मुझ पर क्या अच्छा लगता है क्या नही सब कुछ मैं उनसे ही जान पाती हूँ  कहने को तो मेरे भाई मुझसे बहुत छोटे है पर हर गलती पर बिलकुल माँ की तरफ समझाइश देते है  मुझे एक माँ की कमी महसूस होती है पर' एक सहेली' की कमी बिलकुल भी नही खलती।