Saturday, 22 August 2015

                                   रामायण के शुरू में की जाने वाली विसर्जन वंदना 

 जेहिं सुमिरत सिधि होई , गण नायक करिवर वदन।
करउ अनुग्रह सोइ , बुद्धि राशि शुभगुण सदन।
मूक होय वाचाल , पंगु चढिहिं गिरवर गहन।
जासु कृपा सो दयालु , द्रवहु सकल कलिमल दहन।
नील सरोरुह श्याम ,तरुण अरुन वारिज नयन।
करहु सो मम उर धाम , सदा क्षीर सागर सयन।
कुन्द इन्दु सम देह , उमा रमण करुणा अयन।
जाहिं दीन पर नेह , करहुँ कृपा मर्दन मयन।
बन्दॐ गुरु पद कन्ज , कृपासिन्धु नर रूप हरि।
महा मोह तम पुंज , जासु वचन रविकर निकर।
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी
बन्दॐ अवध भुआल ,सत्य प्रेम जेहि राम पद।
विछुरत दीनदयाल , प्रियतनु तृण इब परिहरउ।
प्रबनउ पवन कुमार , खेल बल  पावक ज्ञान घन।
जासु ह्रदय आगार , वसहिं राम सर चाप धर।
दोहा - गिरा अर्थ जल बीच सम , कहिअत भिन्न न भिन्न।
           बन्दॐ सीता राम पद , जिन्हहि परप  प्रिय खिन्न। ।

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