Sunday, 2 August 2015

माँ

आज हवा में अजीब सी खुशबू छायी है। 
शायद वो आज मेरी माँ से मिलकर आयी है।
मत होना मेरी बेटी उदास ये संदेसा लेकर आयी है।
याद आती है वो रातें जब माँ ने लोरी सुनायी है।
खामोश है दीवारे और घर में उदासी छायी है।
त्योहारो में खुशियाँ नहीं , पकवान भी है फीके से
रंगोली के रंग भी बेरंग हो गए ,  और दीवाली में भी अँधियारी छायी है।