Monday, 20 July 2015

मंजिल


 
ये कैसी जगह ले आई है जिंदगी , जहाँ भटकती राहों को मंजिल मिल गयी। 
हर पल है जैसे खुशनुमा सपना, मैं मीरा सी दीवानी बन गयी।  
और उस खुदा से कुछ न चाहिए , इतनी ख़ुशी मिली के दुनिया जन्नत बन गयी। 
उस अजनबी शख्स के प्रथम स्पर्श से , एक नयी पहचान मिल गयी। 
आँखों में पले सपने हकीकत बन गए , यकीन नहीं आता कि आज मैं  ''दुल्हन ''बन गयी।

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